कहानी संग्रह >> अगला यथार्थ अगला यथार्थहिमांशु जोशी
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हिमांशु जोशी की हृदयस्पर्शी कहानियों का संग्रह...
जो घटित हुआ
देह पर जगह-जगह नीले निशान पड़ गए हैं। घावों से अब तक निरंतर लहू बह रहा है। मुझे लगता है-मेरे पांवों के पास वही क्रुद्ध घायल नाग जमीन पर फन पटक-पटककर फुफकारता हुआ रेंग रहा है, जो सांझ ढलने से पहले, प्रायः प्रतिदिन मुझे एक बार अवश्य डसता है...
लोग कहते हैं-यह मात्र मेरा भ्रम है। हां, पिछली गर्मियों में, किसी सांप ने मेरे बाएं पांव पर अवश्य डंक मारा था... किंतु इसके बाद वह फिर कहीं भी दिखलाई नहीं दिया...
पर कल रात...
चावल निकालने के लिए पत्नी ने बोरे में हाथ डाला ही था कि हथेली से भी चौड़ा कुरबुरेला फन अंधियारे में काटने को लपका...
कोट के कॉलर के ऊपर हैंगर में लटकी टाई, कल अपने आप इधर-उधर सरक रही थी... चमड़े की जिसे पेटी को मैं पैंट बांधने के लिए इस्तेमाल करता हूं-आज उसकी जगह केवल एक पतली-सी पारदर्शी सफ़ेद केंचुल पड़ी हुई मिली।
जूते पहनते समय फीता टूट पड़ा था। टूटा टुकड़ा मैंने जमीन पर फेंका तो वह कटे केंचुए की तरह धूल में अंगड़ाई लेने लगा। जहां पर से टुकड़ा टूटा था, वहां खून का छोटा-सा धब्बा दीख रहा था।
सामने रखे ग्लोब में नदियों को आसमानी रंग की दोहरी लकीरों में दिखलाया गया है। मैं देख रहा हूं-एक भी नीली लकीर अब ग्लोब में नहीं है। सबकी-सब नीचे एकत्र होकर, उलझे धागों की तरह सटी हैं और एक-दूसरे को निगल रही हैं...
राशन की दुकानों पर अनाज के बदले देले बिकते देख मुझे आश्चर्य नहीं होता...
कहते हैं-अनुसंधान के क्षेत्र में हमने अद्भुत प्रगति की है.. डॉक्टर बसु की वनस्पति संबंधी खोजों का अगला चरण डॉक्टर बागची ने प्रस्तुत किया है-उनके अनुसार वनस्पतियों में ही नहीं, पत्थर, सूखी लकड़ी, ईंट और चट्टान में भी जीवन होता है। और भोजन के पूरे पोषक तत्त्व भी...
अतः सरकार ने निश्चित किया है अकाल-ग्रस्त इलाकों में अब अन्न के बदले पत्थर वितरित किए जाएंगे....
छोटे-छोटे दूधमुंहे बच्चे रोटी के बदले ढेला खा रहे हैं। मैं देख रहा हूं-ट्रेनें लद-लदकर रायपुर, बस्तर और बिहार की ओर धूल उड़ाती, चिंघाड़ती भाग रही हैं...
कहते हैं-पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली ने अपने-अपने प्रदेशों से पत्थरों के निर्यात पर रोक लगा दी है... एक ही रात में अनाज के व्यापारियों ने पत्थरों के बड़े-बड़े स्टॉक इकट्ठा कर लिए हैं।
इसलिए अब केवल ऊंची कीमतों पर ही चोर-बाज़ारी में पत्थर बिक सकेंगे। पत्थरों का भी इस देश में अकाल पड़ गया है।
दूर तक फैली, फटी हुई रसूखी धरती पर नहर-जैसी चौड़ी दरारें पड़ गई हैं। बस्तियां खंडहरों में बदल गई हैं। जनशून्य पृथ्वी पर कहीं एक भी प्राणी नहीं चारों ओर केवल हड्डियां ही हड्डियां बिखरी पड़ी हैं...
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- कथा से कथा-यात्रा तक
- आयतें
- इस यात्रा में
- एक बार फिर
- सजा
- अगला यथार्थ
- अक्षांश
- आश्रय
- जो घटित हुआ
- पाषाण-गाथा
- इस बार बर्फ गिरा तो
- जलते हुए डैने
- एक सार्थक सच
- कुत्ता
- हत्यारे
- तपस्या
- स्मृतियाँ
- कांछा
- सागर तट के शहर